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23 November 2017
मैं नहीं जानती, की कैसे हो तुम,
शायद अब तो आसमान को भी जीत चुके होगे,
सोचती हूँ, पर चाहकर भी पूछ नहीं सकती,
कुछ बदले हो या, आज भी वैसे ही हो तुम।
सिहर उठती हूँ मैं, जब कोई मुझे छूता है,
लेकिन तुम्हारी उँगलियों के स्पर्श को,
आज भी ये तन मचलता है,
कुछ बदले हो या आज भी वैसे ही हो तुम,
तुम्हारा वो गुस्सा, तुम्हारी वो जिद्द,
जो कभी मेरे सामने चल नहीं पाया,
पता नहीं आज भी कोई समझता है या नहीं
कुछ बदला है या आज भी वैसे ही हो तुम,
डर जाती हूँ मैं, जब भी कोई हँसता है,
लेकिन तुम्हारा मेरे सामने चुप बैठकर मुझे देखना
चुपचाप, बंद होंठों से मुसकराना आज भी याद आता है,
कुछ बदले हो या आज भी वैसे ही हो तुम।
जानना चाहती हूँ पर पूछ नहीं सकती,
तुम्हारे वो आँसू जो कभी आँख से निकाल नहीं पाये,
बहा देते हो किसी के सामने ये बोल की कचरा गिर गया है
या मेरी ही तरह अपनी आँखों में ही सूखा लेते हो तुम।
कहना चाहती हूँ पर कह नहीं सकती,
तुम आज भी उतना ही पसंद हो जितना कल अच्छे लगते थे,
क्या बताओगे की, तुम भी मुझे उतना ही याद करते हो जितना मैं,
या खुद के साथ मुझको भी भुला बैठे हो तुम…
अच्छा नहीं है, मेरा दिल जानता है सब कुछ,
ना ही अधिकार है मेरा अब कोई तुम पर,
लेकिन क्या एक बार फिर मुझे अपनी बाहों में लेकर कहोगे
की कुछ बदला है या आज भी सिर्फ मेरे ही हो तुम?
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