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सब वक्त वक्त की बात है sab WAKT WAKT KI BAAT HAI

MERA KONA
MERA KONA
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एक वक्त ऐसा भी गुजरा है जमाने में

बिन मेरे ना रात ना दिन निकलता था,

आज हम तेरे संग बैठने के भी काबिल नहीं,

सब वक्त वक्त की बात है।

जानता हूँ तू कसमों वादों का तलबगार है,

और तेरे हर एक लफ्ज पर मुझे एतबार है,

कहे अनकहे वादे तो हमे भी मिले थे,

इस दिल ए नादां को को तेरे लफ्जों पर अमल का इनतेजार है।

बेशर्म, बेहया, बेवकूफ़ जो चाहे कह ले मुझको,

तू जो कहे उस पर तेरा अधिकार है,

हम खड़े हैं आज भी इंतेजार में उसी चौराहे पर,

मेरी नजरों को आज भी तेरे लौटने का इंतेजार है।

शर्म और हया जमाने की तो हम में भी थी,

पर चाहत तुझे पाने की कहीं कम ना थी,

मैं तुझे पाने के लिए जमाने से लड़ गया…

तू तो है खुश गैरों की महफ़िलें सजाने में,

मुझे दर्द देकर अपनी खुशियाँ मनाने में,

तू खुद ही बन हाकिम और सुना दे फैसला,

बस बता मेरी बरबादी का कौन गुनहगार है ।

छोडना था मुझे तो छोड़ देते शौक से

उफ आह की आवाज भी न निकलती मेरे होंठ से,

अगर तूने अंदाज दिल का जाता दिया होता,

हाथ छोडने से पहले जहर मुझे पिला दिया होता॥

मरने की नहीं, तेरे लिए जीने की चाहत थी मुझमें

संग तेरे जमाने से लड़ने की ताकत थी मुझमें,

ख्वाब जन्नत के दिखाकर कहाँ ला दिया तुमने,

गैरों के लिए अपनों का गला दबा दिया तुमने॥

रंग लो अपने हाथ तुम खून से मेरे,

सजा लो अपनी मांग तुम दर्द से मेरे

सब वक्त वक्त की बात है,

सब वक्त वक्त की बात है।

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