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महात्मा गाँधी ने कहा था की ” मेरा दावा है कि मानव मन या मानव समाज निर्विवाद सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक कहे जाने वाले भागो में विभाजित नहीं है I सभी एक दूसरे पर आश्रित हैं और एक दुसरे से जुड़े हुए हं I” , महात्मा गांधी ने कहा कि सात बातें हमें नष्ट कर देंगी …..सिद्धांत के बिना राजनीति…. भी उनमे से एक है..
सोशिअल मीडिया पर नियंत्रण हो या न हो ये तो विचार करना जरुरी है ही साथ ही उससे जरुरी बात ये है की सोशिअल मीडिया पर नियंत्रण की जरुरत क्यों महसूस हो रही है और इसकी मांग कर कोन रहा है ?
आखिर सोशिअल मीडिया पर बंदिशों की बात तभी क्यों होती है जब इसके निशाने पर हमारी सरकार , कोई वजीर, सरकार का कोई नुमईन्दा या , या कोई ताकतवर व्यक्ति होता है. या इनमे से किसी के काले कारनामो से पर्दा उठता है. सोशल मीडिया पर नियंत्रण की बात सबसे पहले बाबा रामदेव के आन्दोलन के समय चली, उसके बाद अन्ना हजारे के अनशन के समय भी कुछ आवाज़ आई I
“जब तक आपने उछाला वो गुलाल था , हमने उछल दिया तो गंदगी हो गया I ”
सोशल मीडिया तो समाज का दर्पण है . जब चेहरे पर कलिश लगी हो तो दर्पण साफ़ करने से काम नही चलता, जरुरत सोशल मीडिया पर बंदिश लगाने की नहीं अपना चेहरा साफ़ करने की है .
जब ताकत गलत लोगो के हाथो में होती है तब ऐसा ही होता है I अगर कुछ बदलना है है तो उन लोगो को बदलना होगा जो जनता के सेवक होने के नाम पर जनता से अपनी सेवा करा रहे हैं I चूँकि ये मामला अभिषेक मनु के बाद आया है तो ये भी सोचना होगा की अब कैसे हमारी अदालते सिर्फ इस बात पर की दोनों पक्षों में अदालत से बहर समझोता हो गया है इस मामले को निरस्त कर देती हंI ऐसे तो कल कोई भी अगर अदालत से बहर मामला सुलझा ले अदालतों की जरुरत क्या है . इस मामले को अदालत में क्या सिर्फ मीडिया में लाने के लिए किया गया था. ये हमारे सिंधवी जी की वकालत का नमूना नहीं तो और क्या है?
कल अगर कोई चोर , लुटेरा, डाकू अपनी खुस्किस्मती से ( और हमारी बदकिस्मती से) माननीय बन जाये और कहने लगे की चोरी करना , लोगो को लूटना तो उसको निजी पेशा है तो क्या आप उसे स्वीकार करेंगे ?
चाहे कोई राजनेता हो या हीरो ये हमारे रोल मॉडल होते है अगर इन लोगो को अपनी निजी जीवन की चिंता है तो सामाजिक जीवन में आते ही क्यों है? क्या सिर्फ पैसे कमाने के लिए ? जिसे अपनी निजता की चिंता है वो सामाजिकता से सरोकार न रखे I
ब्रिटिश राज में जब सोशल मीडिया नहीं था क्या तब अंग्रेज लोगो को रोक पाए , नहीं ना तो फिर अब क्यों? किसी का मुह बंद करने से अप उसके दिमाग को तो नहीं रोक सकते अगर बदलना है , तो उन लोगो को बदलो जिन्हें जनता की नहीं अपनी निजता की चिंता है I
निजी और सामाजिक जीवन
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