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में भिखारी नही हूँ.

MERA KONA
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जनवरी का महीना प्रारंभ ही हुआ था. सर्दी अपने पूरे जोरो पर थी. तापमान लगभग 3-4 सेंटिग्रेड रहा होगा. ऐसे मे सुबहा को जल्दी उठने के बारे मे सोचनाही अपने आप मे बहुत कुछ था. पर मुझे उस दिन एक ज़रूरी काम से बरेली जाना था तो सुबहा को जल्दी उठना पड़ा .जैसे तैसे मैं ओर मेरा दोस्त अनस टेंपो पकड़कर रेलवे स्टेशन पहुचे. एंक्वाइरी काउंटर पर देखा तो ट्रेन आने मे अभी 30 मिनट बाकी थे अनस टिकट लेने चला गया ओर मैने बुक स्टॉल से पढ़ने के लिए एक अख़बार ले लिया लेकिन उस सर्द हवा मेअख़बार पढ़ने की हिम्मत नही जुटा पाया हवा से बचने क लिए नज़र दोड़ाई तो एक तरफ एक कोने मे दीवार की साइड मे एक बेंच दिखाई दी उसपर एक सज्जन पहले ही बैठे हुए थे. मेरे कदम उधर ही बढ़ उठे मैं जाकर बैठ गया और अख़बार पढ़ने लगा

अभी मुश्किल से 10 मिनट ही हुए होंगे अभी अख़बार पढ़ते हुए , एक बूढ़ा आदमी जिसकी दाढ़ी बढ़ी हुई, फटे हुए कंबल को लपेटे हुए मेरे साइड वाले सज्जन के सामने खड़ा था . अचानक मेरा ध्यान गया तो मैने देखा की कुछ याचना कर रहा था और मेरे पड़ोसी सज्जन जो अभी तक सामानय व्यक्ति ही लग रहा था ऐसे लगने लगा के जैसे कोई ऋषि महात्मा सदियो से समाधि लगाए हुए बैठे हो अब वो बूढ़ा आदमी मुझे जाग्रत अवस्था मे देखकर मेरी तरफ बढ़ने लगा. मैने सोचा के क्यो ना फिर से अख़बार मे खो जाउ ये सोचता ही रह गया और अचानक ही ना जाने कब और कैसे मेरे साइड वाले सज्जन की समाधि टूटी और उन्होने बला की सी फुर्ती से लगभग छिन्ने वाले अंदाज मे अख़बार अपने हाथो मे लिया . और वो सज्जन ऐसे लग रहा था की मानो कब से खोए हो पेपर मे. पेपर पढ़ने मे इतनी मग्न्ता की शायद मीराजी भी शर्म जाती. पर इससे अलग मुझे ऐसे लग रहा था की जैसे मुझे निहत्थे ही तोप के सामने खड़ा कर दिया हो. मैं ये सोच ही रहा था की बूढ़े ने कुछ कहा जिसे मैं समझ नही पाया. बूढ़े ने फिर अपनी बात दोहराई पर मैं फिर भी नही समझ पाया या यो कहे की शायद मैने पीछा छुड़ाने क लिए समझने की कोशिश ही नही की मेरे हाव भाव कुछ ऐसे ही थे

“आप उचा सुनते है क्या?” आख़िर कब तक बचाता खुद को मुझे सामने आना ही पड़ा

“नही, …वो में आपको समझ नही पाया था…….” मैने बहाना बनाया

“आई अम नोट स्पीकिंग इंग्लीश…….” एक भिखारी नज़र आने वाले व्यक्ति के मुँह से अँग्रेज़ी सुनकर बड़ा अजीब लगा. ऐसे लगा मानो मेरी को चोरी पकड़ी गयी हो. फिर भी बहाना बनाया……

“नही, वो आपकी आवाज़ बहुत धीमी थी….”

“हम देहरादून के रहने वाले है और किसी काम से मुरादाबाद आए थे. ( मेरे मॅन को बड़ी शांति मिली ये सुनकर,, सोचा की ये भिखारी नही है )”

“आप देहरादून वापस क्यो नही लौट जाते?” मैने पूछा

“हाँ चाहते तो है, पर लगभग 100 रुपेय का टिकेट होगा” जवाब मिला.

“आप पॅसेंजर से जाओ उसमे 25-30 तक का ही होगा” मैने सलाह दी

“कल से कुछ नही खाया है , सर्दी लग रही है टिकेट कहाँ से ले?“

“अरे ऐसे ही चढ़ जाओ 10 – 12 घंटे मे पहुच जाओगे” मैने फिर से सलाह दी बूढ़ा चुप हो गया 5 मिनिट तक ऐसे ही खड़ा रहा और मेरा दिमाग़ ढूंढता रहा उसे पीछा छुड़ाने का उपाय और फिर

“देखिए हम किसी को पैसे तो देते नही….”

“हम आपसे माँग ही कहा रहे है?” मानो एक थप्पड़ सा लगा मेरे मुह पर.

अब मुझे लगा की मैं लड़ाई हार चुका हूँ मैं बेंच से उठा. साइड वाले सज्जन की तरफ देखा तो उनके चेहरे की मुस्कान बता रही थी की मैं हार चुका हूँ ओर वो जीत चुके है. कुछ दूर एक ठेला था . मैं बूढ़े को लेकर ठेले की तरफ बढ़ gया. ठेले के पास पहुचा तो ठेले वाला बोला अभी आधा घंटा कुछ नही मिलेगा. मैने बूढ़े को बता दया . अब मुझे पहली बार बूढ़े के चेहरे पर हार नज़र आई . वो निराश हो गया . अब तक अनस भी आ पहुचा मुझे ढूनडते हुए. अचानक मुझे एक आवाज़ सुनाई दी…..

“बेटा, एक चाय पीला दो , गेट की तरफ दुकान है”

मैं अनस को लेकर तेज़ी से गेट पर पहुचा तीन कप चाय ली. ओर बूढ़े को खाने के लिए एक ब्रेड भी दिया मैने अनस को बताया की ये इंग्लीश बोलता है. अभी 2 घुट चाय ही पी होगी की लगभग 8-10 साल का एक भिखारी लड़का ना जाने कहाँ से आ टपका. मैं और अनस हाथो मे कप लिए जल्दी से बाहरआए आख़िर लड़के से पीछा जो छुड़ाना था. पर लड़का तो जोंक की तरहा चिपक गया था.कभी मुझ पर तो कभी अनस पर हम उसे एक दूसरे पर टालते रहे और जल्दी जल्दी चाय ख़तम कर दी.चाय के खाली कप डस्टबिन मे फेंके तो मानो की जैसे लड़के का तो सब कुछ लूट गया . लड़का वापस मुड़ गया. गर्दन नीचे करके जाने लगा दो कदम ही चला होगा की एक कापता हुआ हाथ उसकी तरफ चाय का कप बढ़ा रहा था. बूढ़े ने अपनी चाय छोटे लड़के को दे दी और साथ मे एक मीठी सी डाँट भी लगाई “ शर्म नही आती भीख माँगते हुए,

बूढ़े की बात सुनकर बड़ी ग्लानि हुई. ना जाने कहाँ खो गया था मैं….. तभी रेलवे स्टेशन पर उद्घोसना हुई,

“यात्रीगण कृपया ध्यान दे, दिल्ली से चलकर हापुड़ , मुरादाबाद , लखनऊ के रास्ते …………..जाने वाली …………………… एक्सप्रेस प्लॅटफॉर्म नंबर 1 पर आ रही है”

अनस ने भागकर उन सज्जन से अख़बार लिया और हम दोनो तेज़ी से बढ़ चले आगे की तरफ क्योकि जनरल डिब्बे मे बैठना तो दूर की बात चढ़ने के लिए भी संघर्ष जो करना बाकी था अभी………….

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